Friday, October 24, 2008

When you are in love...


TWELVE:
You talk with him/her late at night and when you go to bed you still think of him/her.

ELEVEN:
You walk really slowly when you are with him/her.

TEN:
You don't feel Ok when he/she is far away.

NINE:

You smile when you hear his/her voice.


EIGHT:
When you look at him/her,you do not see other people around you.You see only him/her.

SIX:

He/She is everything you want to think.


FIVE:
You realize that you smile every time you look at him/her..

FOUR:
You would do anything to see him/her.

THREE:

While you have been reading this, there was a person in your mind all the time.


TWO:
You've been so busy thinking of that person that you didn't notice that number 7 is missing.

ONE:
You are going to check above if that's true and now you are silently laughing to yourself.

Wednesday, October 1, 2008

इनटू दी वाइल्ड - Into the Wild !

इनटू दी वाइल्ड
------------------------

हाल ही में मैंने यह मूवी देखी | बहुत ही अजीब सा प्लाट था | एक भला चंगा मानस सोचता है की अलास्का के जंगल में बिना किसी "मटेरिअल रिसोर्स" के रहा जाए ! भइया , हम में से शायद ही कोई ऐसा सोचे , बल्कि ऐसी नौबत कहीं आ जाए तो वहां से कैसे बचा जाए हम तो यूँ सोचें !
पर इस मूवी को देख कर फिर मैंने सोचा की क्या वाकई हम लोग इस वस्तुवाद के इतने अधीन हो गए हैं की प्रकृति के साथ अकेले दो पल नहीं रह सकते ? क्या हम वास्तव में "materialistic" हो गए हैं ?

मेरा भी बहुत मन करता है ..कभी ...कभी ... की दुनिया में रहूँ.. इससे अलग हो कर | वो कहते हैं ना- जैसे कमल में पानी की बूँद रहती है- उसी में.. किंतु अलग सी | हम सब अपने आप से कितनी सारी 'चीज़ें' बाँध लेते हैं ना? मेरा घर , मेरे बच्चे , मेरा नाम , मेरा पैसा, मेरी गाड़ी, मेरा परिवार, मेरा ,मेरा ,मेरा !
मैं इस "मैं" से हट कर कुछ दिन गुजारना चाहती हूँ | क्या अपने ही नाम को दूर रख कर मैं इस दुनिया के किसी कोने में रह पाऊंगी? इंडिया जाना चाहती हूँ | सारा देश घूमना चाहती हूँ -मन्दिर, मस्जिद,वन, उपवन, देश, नगर, शहर, पहाड़, पर्वत, सब छूना चाहती हूँ | लेकिन एक विदेशी पर्यटक के जैसे नहीं , सिर्फ़ एक कौतुक इंसान की तरह | बिना किसी नाम या पहचान के रहना चाहती हूँ कुछ दिन | सब रिश्तों से दूर , सब अनुबंधों से परे |
क्या इतना कठिन है ख़ुद से हट कर ख़ुद को देख पाना ?

Tuesday, August 19, 2008

मेरी सखी -मेरी डायरी !

नमस्कार मित्रों,
हर कवि या लेखक की एक डायरी होती है | आपकी भी होगी, है ?
एक सहचरी की तरह साथ रहती है हमारे , हमेशा ... कहीं एक कन्धा बन जाती है, भीगने के लिए तो कहीं एक मित्र- जीवन के पदकों को झिलमिलाने के लिए ! ज्यों -ज्यों वक्त गुज़रता है , डायरी भरती रहती है | फिर इतनी भर जाती है की उसमें जगह नहीं दिखती , अपने लिए और ही अपनों के लिए |
.....और फिर शुरू होती है एक नई डायरी |
जाने कितनी ही यादें समेटे रहती है यह !
हर पन्ना एक एहसास होता है , किसी के लिए , बहुत सच्ची होती है ये अभिव्यक्ति, क्योंकि ये बातें हम ख़ुद से करते हैं | कोई छंद या प्रपंच नहीं होता इसमें , बहुत भोली होती है ये बातें क्योंकि इसमे सिर्फ़ भावना होती है, कोई दिखावा नहीं होता |
जाने आजकल कोई लिखता भी है या नहीं - क्या भावनाएं नहीं रहीं? या शब्द खो गए हैं ? हो सकता है अब किसी के पास वक्त नहीं रहा ? या फिर शायद लोग ख़ुद से ही अपनी सच्चाई कहते डरने लगे हैं ...... कोई जान ले मेरे मन में क्या है , कहीं मेरी छवि टूट जाए | क्या मैं वाकई ये सोच रही हूँ , नहीं तो ....

और वक्त कभी ऐसा भी आता है जब हम इस साथी से फिर मिलते हैं , बरसों बाद , एक नए चेहरे के साथ , एक नए मिजाज़ में, एक नए उम्र में ... उस-से मिलते हैं , ख़ुद से मिलते हैं , हँसते हैं , बहुत हँसते हैं ! और फिर स्वतः ही आखें बरस जाती हैं, जैसे प्रकृति का कोई नियम हो | बादल भारी हो तो गिर जाता है धरती पर, जो दिल भारी हो तो कहाँ गिरे ?

लेकिन ऐसा नहीं है की यह सिर्फ़ भावनाओं का घर है , इसमें साहित्य का जन्म होता है , इसीमें इतिहास वास्तविक रूप में सहेजी जाती है | चाहे वो आन्ना फ्रैंक की डायरी हो जिसने विश्व भर के लोगों को युद्ध का वह निर्मम रूप दिखाया था जो एक चौदह वर्षीया आंखों ने देखा और लिखा , या फिर पर्यटक फाह यान जिसकी लेखनी के सहारे इतिहास उस सभ्यता को जान पाया जिसे समय ने बड़ी बेरहमी से मिटा दिया था|


कौन जाने....... कल 'आपकी' डायरी इतिहास की, समय की या साहित्य की एक मिसाल बन जाए ?
सच ही तो है , रहें न रहें हम पर जो रह जायेगी वो आप रच नहीं रहे ...
आज ही मेरी अर्चना सुनिए और कलम उठाइए !